घृणा दूसरे धर्म की कुप्रथा से है या दूसरे धर्म से?

ईद ओर दीवाली दो ऐंसे त्योहार हैं जो हिंदुस्तान में किसी एक धर्म की जागीर नही रह गए हैं बल्कि अब यह त्योहार हमारे देश की संस्कृति का हिस्सा हैं । इन त्योहारों से भारत का हर व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है मीठी ईद में सेवइयों का इंतज़ार ओर बकरीद में मटन का इंतज़ार मुसलमानों से ज़्यादा अन्य धर्म के लोगो को करते हुए  देखा है मेने ,
यही तो एक खास बात है  जिसके कारण आज भी हम अनेक होकर भी एक हैं  । अब बात करते हैं कुर्बानी की ... भारत एक हिन्दू बहुसंख्यक देश है ,हिंदुओं की कुछ जातियों ,कुछ मान्यताओं में मांस का सेवन पाप माना गया है पर यदि वर्तमान की बात की जाए तो कई हिंदुओं ने मांस का सेवन करना शुरू कर दिया है यहां तक कि कई ऐंसी जाती के लोगों ने भी जिनका हिन्दू धर्म में एक ऊंचा स्तर है उदाहरण के तौर पर ब्राह्मण ( जातियों का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि वर्तमान में भी जाति व्यवस्था खत्म नही हुई है , कृपया यह न समझें कि में जातिवाद का समर्थक हूँ) ओर भी कई ऐंसी जाती के लोगों ने मांस खाना शुरू किया है जहाँ मांस पूरी तरहां प्रतिबंधित था । जब अधिकतम हिंदुओं ने मांस खाना शुरू कर दिया है तो यह तो कहना सरासर गलत होगा कि हिन्दू धर्म में मांस खाना प्रतिबंधित है क्योंकि जो लोग मांस खाते हैं वह भी हिन्दू कहलाते हैं,वह पूजा भी करते हैं , यज्ञ से भी उन्हें नही भगाया जाता,। आज भी कई हिन्दू मासाहारी होने के बाद भी मांस खाकर पूजा न करना, कुछ बिशेष दिनों में मांस न खाना जैसे उपायों से अपने मन की श्रद्धा को तसल्ली दे लेते हैं । धार्मिक लोग दरअसल  मन की श्रद्धा को तसल्ली देने के मामले मे बहुत कुशल हैं चाहे वह उपवास में चार बार फलहार करना हो (यहां सभी की बात नही हो रही है) या फिर कुछ विशेष दिनों में शाकाहार का पालन करना, वहीं मुस्लिम समुदाय में भी हलाल गोश्त नामक मान्यता है जिसके तहत एक बिशेष प्रक्रिया के तहत काटे गए मांस को ही खाने की इजाज़त होती है ।
अधिकतम हिन्दू मांस में भी कुछ चुनिंदा चीजों का सेवन करते हैं और जो इन चुनिंदा जीवों के अलावा किसी और जीव का सेवन कर ले तो वह पापी होता है कई बार तो ऐंसे पापी की हत्या भी हो जाती है ,हद तो तब हो जाती है जब कुछ राज्य  की सरकारों ने भी ऐंसे पाप पर प्रतिबंध लगा रखा है ।  खैर जहां धर्म या श्रद्धा होती है वहां लॉजिक लगाना तर्क संगत नही है क्योंकि श्रद्धा और लॉजिक का दूर दूर तक कोई वास्ता नही होता इसलिए धर्म के नाम पर कोई भी धर्म कुछ भी करे उसे करने की आज़ादी होनी चाहिए ,बशर्ते उससे किसी का शोषण न हो रहा हो या उस परंपरा का दुरुपयोग कोई खुद के हितों के लिए न कर रहा हो । आज ईद का दिन है  .. सोशल मीडिया पर सुबह से ईद की शुभकामनाओं का तांता लगा हुआ है शुभकामनाओं के साथ एक नई चीज़ भी इस बार देखने को मिली.. ईद पर होने वाली बकरे की कुर्बानी का विरोध ,जाहिर है यह विरोध हिन्दू धर्म के कुछ लोग ही कर रहे हैं । इस बात पर बहुत ही आश्चर्य हुआ और इन तथाकथित धार्मिक लोगों की मानसिकता पर तरस भी आया , अगर हिंदुओं में मांस खाना प्रतिबंधित होता या कोई भी हिन्दू मांस का सेवन न करता होता तो भी यह विरोध सही नही होता पर तर्कपूर्ण होता । जिस बकरे के मांस को हिन्दू धर्म के लोग बिना मान्यता के स्वाद के लिए खाते हैं उसी बकरे के मांस को यदि एक मुसलमान मान्यता के रूप में खा रहा है तो इसमें आपको किस बात की चुभन हो रही है । क्या हिन्दू जिस मांस को खाता है वह सीधे स्वर्ग लोक से ही कटकर आता है? तो फिर यह बेवकूफाना विरोध क्यों? अगर जीव हत्या से इतनी घृणा है तो फिर पहले सारे बहुसंख्यकों का मांस खाना बंद करवाइये  ओर अगर नही करा सकते तो मुसलमानों के प्रति अपने मन में भरी हुई नफरत को कुप्रथा के विरोध का नाम मत दीजिये । हर धर्म में कुप्रथाएं हैं  बहुविवाह, घूंघट,बुर्का जैसी ,लिखना है तो उनपर लिखिए । आप जैसे तथाकथित धर्म रक्षकों को मैने कभी घूंघट या बुर्के पर लिखते नही देखा  यहां तक कि जिस बलि का विरोध कर रहे हो वह बलि जब हिन्दू धर्म में होती है तो वह भी तुम्हे गलत नही लगती

सलाम है तुम्हारी बृद्धि को दरअसल आप सिर्फ भड़ास निकालने के लिए लिखते हैं पर आपके मन में भरी नफरत का कोई इलाज नही है । कइयों को तो हिन्दू का ईद मुबारक कहना भी नही सुहाता उनका तर्क होता है कि पहले उनसे गणेश चतुर्थी की बधाई लो फिर ईद मुबारक कहना या उनसे पहले वचन लो कि वह  भी दीवाली की शुभकामनाएं देंगे फिर ईद मुबारक कहना .. सलाम है आपकी बुद्धि को ,दरअसल दोष सिर्फ आपका नही आपको मिले संस्कारों का ओर जिन बुद्धिहीनों की बातों पर आप अमल कर रहे हैं उनका है।


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