धार्मिक प्रथा कहां तक सफल?

औरत तो सदियों से अपने बाल ओर चेहरा छुपाती आई है
क्या मिला उसको ? क्या ओरत की इज़्ज़त करना  आ गया लोगों को इस्लाम में लगभग 1400 साल से पर्दा कर रही है औरत, तथाकथित सनातन धर्म भी सदियों से घूंघट के नाम पर औरत को ढंकने के लिए सालों सेें अग्रसर है ,हो गए बलात्कार बंद? । एक बदलाव ज़रूर आया है पहले बलात्कार सिर्फ अपराधी करते थे अब ये आम है , घर के अंदर भी होते है अब तो ( ओरत के सालों तक पर्दा करने के बाद भी)। घर के बाहर जब औरत निकलती है और उसको मर्दों द्वारा जिस तरहाँ घूरा जाता है( यह वही मर्द हैं जो खुद परिवार की औरत को पर्दे या घूंघट में रखते हैं) उस बक्त औरत को जो एहसास होता है उसका आंकलन करना मुश्किल है। लड़की 12 साल की होती है उसे सिखाया जाता है तुम्हे पर्दे में रहना है ,नज़रें झुकी हुई होनी चाहिए , हमारी बदनामी मत करना ( मतलब किसी भी लड़के से बात मत करना) , समय पर घर आ जाना , कोई कुछ भी बोले बहस मत करना।
आप खुद सोचिये अपने लड़के से कभी बोला है आपने की कोई भी लड़की दिखे तो आंखें झुका लेना , किसी गैर लड़की से बात नही करना , नही हमने कभी ऐंसा नही किया ।
हम अपने लड़के के सामने अपनी लड़की से जब बोलते हैं कि तुम लड़की हो तुम्हे ज़रा हिसाब से रहना है तो कहीं न कहीं उस लड़के के दिमाग में यह भी चल रहा होता है कि में कुछ भी कर सकता हूँ दोष लड़की पर ही आएगा। इसी का नतीजा होते हैं वो लड़के जो गली में खड़े होकर दूसरी लड़कियों को घूर रहे होते हैं और व्हाट्स एप्प पर अपनी बहनों को पर्दा प्रथा को प्रमोट करने वाले मैसेज भेज रहे होते हैं । वो चाहते हैं उनकी बहन ढंकी रहे क्योंकि इस बात से वो बाकिफ हैं कि हर लड़के की नज़र वैसी है जैसी इनकी ...तो अपनी नज़र को क्यों सुधारना अपने घर की औरतों को ही ढंक देते हैं टेंशन खत्म। आप औरत पर बंदिशें लगाकर उसे सुरक्षित नही कर रहे बल्कि आप एक ऐंसा माहौल तैयार कर रहे हैं जिसमें मनचलों को कुछ भी करने लाइसेंस मिल जाता है , आप इन्ही परंपराओं के द्वारा गुनहारों को बेगुनाह ओर पीड़ित को गुनाहगार बना रहे हैं । सारी धार्मिक भावनाओं को अलग रखकर सोचियेगा .. क्योंकि बेटी के साथ कुछ गलत हुआ तो कोई पंडित या मौलवी नही आएगा , फिर उसकी नज़र में वो अपवित्र या नापाक होगी।

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