कैलाश सत्यार्थी ने पत्रकारिता विद्यार्थियों से साझा किए अनुभव

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय का सत्रारम्भ कार्यक्रम दिनांक 27,28 एवं 29 जुलाई को आयोजित हुआ । विभिन्न क्षेत्रों के सफल व्यक्तियों ने आयोजन में आकर अपने वक्तव्य से सभी विद्यार्थियों को अपने सम्बन्धित क्षेत्र में सफलता हासिल करने के  गुण सिखाये एवं उत्साहवर्धन किया। आयोजन के पहले दिन पहला वक्तव्य नोबेल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी जी का था । अपने वक्तव्य में कैलाश सत्यार्थी जी ने अपने जीवन के निजी अनुभव विद्यार्थियों से साझा किए ,उन्होंने बताया कि किस प्रकार समाज सेवा की ओर रुझान के चलते उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज की नोकरी छोड़ी ओर संघर्ष जारी रहेगा नामक पत्रिका का प्रकाशन किया जिसमें समाज के संपन्न तबके के लिए कोई जगह नही थी इस पत्रिका में सिर्फ समाज के पीड़ित वर्ग को ही जगह मिलती थी ,संसाधनों और धन की कमी के चलते  पत्रिका के संपादक से लेकर लेखक,प्रूफ रीडर ओर यहां तक कि वितरण करने का कार्य भी स्वयं ही किया।अपनी पत्रिका मैं  लोगों की कहानी लिखते लिखते वह कब स्वयं भी उनकी मदद के लिए जाने लगे उन्हें खुद भी पता नही चला ।  नोबेल पुरस्कार से पहले उन्हें शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना रूपी कई पुरस्कार भी मिले जो कि समाज की बुराई मिटाने का प्रयास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मिलते हैं । हर तरहाँ की परेशानियों का सामना करते हुए सत्यार्थी जी ने दुनिया भर के लगभग 86000 बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराकर उन्हें उनका खोया हुआ हक़ दिलाया। सत्यार्थी जी ने बताया कि सिर्फ बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त करा देने से उनका मकसद कामयाब नही हुआ, उन्हें लगता था कि इन सभी बच्चों को शिक्षा प्रदान करना भी एक आम नागरिक होने के नाते उनका फ़र्ज़ है ,परंतु समस्या यह थी कि जिस समय वह हर बच्चे को शिक्षा दिलाने का प्रयास कर रहे थे उस समय शिक्षा का अधिकार भारत के संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल नही था। शिक्षा का संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल न होने का एहसास उन्हें तब हुआ जब उन्हें स्कूल के हेडमास्टर ने  स्कूल से बेज्जत करते हुए यह कहके निकल दिया कि बताओ कोनसा नियम है जिसमें शिक्षा देना आवश्यक है उसी समय सत्यार्थी जी ने निश्चय कर लिया कि वह शिक्षा को संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल करवाकर रहेंगे। शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल कराने के लिए वह उस समय के प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी से भी मिले,उनके कई मित्रों ने उन्हें परामर्श दिया कि कैलाश सत्यार्थी जरा भी राजनीतिक हैसियत नही रखते इसलिए उनके लिए संविधान में संशोधन कराना लगभग नामुमकिन है पर दूसरी ओर कैलाश सत्यार्थी का अटल निश्चय उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था।  कैलाश सत्यार्थी जी के अनुसार उन्होंने कन्याकुमारी से भारत यात्रा निकाली और 4 महीने के अंदर संविधान में संशोधन कराने में सफल रहे । कैलाश सत्यार्थी ने अपने वक्तव्य में कहा कि सम्मान और विनम्रता बनावट नही गुण होना चाहिए। मीडिया में बढ़ रही टी आर पी की दौड़ के विषय में सत्यार्थी जी ने पत्रकारिता के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि टी आर पी के कारण समाज का अधिकतम हिस्सा पीछे छूट जाता है । उन्होंने विद्यार्थियों को यह भी हिदायत दी कि आज़ादी की कीमत पर कोई भी वस्तु स्वीकार नही होनी चाहिए।

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