देश या धर्म?

उम्मीद करता हूँ आप मुझसे सहमत होंगे । हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कई समस्याएं हमारे सामने आती हैं। आमतौर पर हर समस्या के लिए हम देश को ही जिम्मेदार ठहराते हैं  जैसे नोकरी न मिलना,सही कानून व्यवस्था का न होना ,महिलाओं पर अत्याचार होना,सैनिकों का शहीद होने  इन सब के लिए या तो हम सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हैं या देश को ओर ऐंसा करना गलत भी नही है जिस देश में हम रह रहे हैं हमारी उम्मीद होती हैं उस देश से वेसे ही जैसे एक संतान की अपने माता - पिता से । जब हम हर समस्या के लिए देश से उम्मीद रखते हैं तो क्या हमारा फ़र्ज़ नही है कि देश को सबसे ज़्यादा तवज्जो दी जाए । हम में से अधिकतम लोगों के लिए देश से ज़्यादा महत्वपूर्ण धर्म है , ऐंसे लोगों से प्रश्न है मेरा: अगर धर्म सब कुछ है तो खराब सड़क के लिए अपने धर्म को जिम्मेदार क्यों नही मानते, महिलाओं पर जब अत्याचार होता है तो क्यों अपने परमात्मा को दोष नही देते क्योंकि परमात्मा ने ही तो बलात्कारियों को बुद्धि दी है ना।  अब आप में से कुछ लोग कहेंगे या सोचेंगे कि धर्म अपनी जगह है और देश अपनी जगह  उनके लिए एक ओर प्रश्न है कुछ हिंदुओं द्वारा भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का प्रयास करना धर्म को अधिक तबज्जो देना नही है? कुछ मुसलमानों द्वारा भारत में लोकतंत्र की जगह शरिया कानून लाने की इक्षा रखना धर्म को अधिक तबज़्ज़ो देना नही है?बहुत लोगों के मुह से सुन चुका हूं कि इस देश में न्याय नही मिलता क्या आप अपने देश के साथ न्याय कर रहे

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