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Showing posts from July, 2017

कैलाश सत्यार्थी ने पत्रकारिता विद्यार्थियों से साझा किए अनुभव

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय का सत्रारम्भ कार्यक्रम दिनांक 27,28 एवं 29 जुलाई को आयोजित हुआ । विभिन्न क्षेत्रों के सफल व्यक्तियों ने आयोजन में आकर अपने वक्तव्य से सभी विद्यार्थियों को अपने सम्बन्धित क्षेत्र में सफलता हासिल करने के  गुण सिखाये एवं उत्साहवर्धन किया। आयोजन के पहले दिन पहला वक्तव्य नोबेल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी जी का था । अपने वक्तव्य में कैलाश सत्यार्थी जी ने अपने जीवन के निजी अनुभव विद्यार्थियों से साझा किए ,उन्होंने बताया कि किस प्रकार समाज सेवा की ओर रुझान के चलते उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज की नोकरी छोड़ी ओर संघर्ष जारी रहेगा नामक पत्रिका का प्रकाशन किया जिसमें समाज के संपन्न तबके के लिए कोई जगह नही थी इस पत्रिका में सिर्फ समाज के पीड़ित वर्ग को ही जगह मिलती थी ,संसाधनों और धन की कमी के चलते  पत्रिका के संपादक से लेकर लेखक,प्रूफ रीडर ओर यहां तक कि वितरण करने का कार्य भी स्वयं ही किया।अपनी पत्रिका मैं  लोगों की कहानी लिखते लिखते वह कब स्वयं भी उनकी मदद के लिए जाने लगे उन्हें खुद भी पता नही चला ।  नोबेल पुरस्कार से पहले उन्ह

धार्मिक प्रथा कहां तक सफल?

औरत तो सदियों से अपने बाल ओर चेहरा छुपाती आई है क्या मिला उसको ? क्या ओरत की इज़्ज़त करना  आ गया लोगों को इस्लाम में लगभग 1400 साल से पर्दा कर रही है औरत, तथाकथित सनातन धर्म भी सदियों से घूंघट के नाम पर औरत को ढंकने के लिए सालों सेें अग्रसर है ,हो गए बलात्कार बंद? । एक बदलाव ज़रूर आया है पहले बलात्कार सिर्फ अपराधी करते थे अब ये आम है , घर के अंदर भी होते है अब तो ( ओरत के सालों तक पर्दा करने के बाद भी)। घर के बाहर जब औरत निकलती है और उसको मर्दों द्वारा जिस तरहाँ घूरा जाता है( यह वही मर्द हैं जो खुद परिवार की औरत को पर्दे या घूंघट में रखते हैं) उस बक्त औरत को जो एहसास होता है उसका आंकलन करना मुश्किल है। लड़की 12 साल की होती है उसे सिखाया जाता है तुम्हे पर्दे में रहना है ,नज़रें झुकी हुई होनी चाहिए , हमारी बदनामी मत करना ( मतलब किसी भी लड़के से बात मत करना) , समय पर घर आ जाना , कोई कुछ भी बोले बहस मत करना। आप खुद सोचिये अपने लड़के से कभी बोला है आपने की कोई भी लड़की दिखे तो आंखें झुका लेना , किसी गैर लड़की से बात नही करना , नही हमने कभी ऐंसा नही किया । हम अपने लड़के के सामने अपनी लड़की से जब बोल

यही है भष्टाचार मुक्त सरकार?

हाई कोर्ट द्वारा भी अयोग्य घोषित किये जाने पर नरोत्तम मिश्रा जी अभी तक पद पर बने हुए हैं क्या मुख्यमंत्री जी उनसे इस्तीफा मांगने का साहस नही जुटा पा रहे? या फिर यह सब एक ही हम्माम में नहा रहे हैं जिसमें सब वस्त्र हीन हैं । उधर बाबरी मस्जिद को गिरवाकर धर्म की रक्षा करने वाली उमा भारती भी मंत्री पद पर विराजमान हैं ।  ताज्जुब की बात है व्यापम घोटाले ओर नरोत्तम मिश्रा के पेड न्यूज मामले के बाद भी शिवराज सरकार भ्रष्टाचार मुक्त है, उधर उमा भारती जैसे लोग मंत्री और योगी आदित्यनाथ जैसे मुख्यमंत्री होने के बाद भी यह एक सेक्युलर सरकार  है।

देश या धर्म?

उम्मीद करता हूँ आप मुझसे सहमत होंगे । हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कई समस्याएं हमारे सामने आती हैं। आमतौर पर हर समस्या के लिए हम देश को ही जिम्मेदार ठहराते हैं  जैसे नोकरी न मिलना,सही कानून व्यवस्था का न होना ,महिलाओं पर अत्याचार होना,सैनिकों का शहीद होने  इन सब के लिए या तो हम सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हैं या देश को ओर ऐंसा करना गलत भी नही है जिस देश में हम रह रहे हैं हमारी उम्मीद होती हैं उस देश से वेसे ही जैसे एक संतान की अपने माता - पिता से । जब हम हर समस्या के लिए देश से उम्मीद रखते हैं तो क्या हमारा फ़र्ज़ नही है कि देश को सबसे ज़्यादा तवज्जो दी जाए । हम में से अधिकतम लोगों के लिए देश से ज़्यादा महत्वपूर्ण धर्म है , ऐंसे लोगों से प्रश्न है मेरा: अगर धर्म सब कुछ है तो खराब सड़क के लिए अपने धर्म को जिम्मेदार क्यों नही मानते, महिलाओं पर जब अत्याचार होता है तो क्यों अपने परमात्मा को दोष नही देते क्योंकि परमात्मा ने ही तो बलात्कारियों को बुद्धि दी है ना।  अब आप में से कुछ लोग कहेंगे या सोचेंगे कि धर्म अपनी जगह है और देश अपनी जगह  उनके लिए एक ओर प्रश्न है कुछ हिंदुओं द्वारा भारत को हिन्दू

क्या हम आज़ाद हैं?

सिंधु घांटी सभ्यता से आज यानी 2017 तक हम भारतीयों  के जीवन में एवं संस्कृति में कई तरहाँ के परिवर्तन आये है ।इसी भूमि पर सभ्यता के प्रारंभ में जब मानव जीवन यापन के लिए विभिन्न संसाधन जुटाने में लगा था उसे नही पता था कि यह भविष्य में एक संयुक्त भारत होगा धीरे धीरे मानव अपने साधन जुटाने में सक्षम होने लगा दुनिया में चारों ओर सभ्यताओं के विकास होने लगा । हम में से ही कुछ शक्तिशाली और बुद्धिमान राजा के रूप में हम पर राज करने लगे, कोई ब्राह्मण कोई सूद्र हो गया समानता खत्म होने लगी । समानता तो खत्म होने लगी पर हम दूसरी ओर तरक्की भी कर रहे थे इतनी तरक्की की हमें सोने की चिड़िया कहा जाने लगा पर कई बार खूबसूरती ही अभिशाप हो जाती है ऐंसा ही हमारे साथ हुआ और हमारी समृद्धि से आकर्षित होकर कुछ लोग यहां व्यापार करने आये और व्यापार करते करते कब हम पर आधिपत्य कर लिया हम ही नही समझ पाए । फिर इसी धरती और ऐंसे लोगों ने जन्म लिए जिनके खून में संयोगवश गुलामी करना स्वीकार नही था और बगावत शुरू कर दी कि कुर्बानियों , संघर्षों के बाद अंग्रेजों ने घुटने टेके ओर आज़ादी देने पर मजबूर हुए अब हम अलग अलग रियासतों में