अब आलोचना का अधिकार भी सिर्फ सत्ता के पास ही होना चाहिए
एक पत्रकार को योगीजी के लिए इस तरह की भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। योगीजी देश के एक प्रदेश के मालिक हैं, उन्हे हुज़ूर, महाराज या मालिक जैसे शब्दों से संबोधित किया जाना चाहिए। बेवकूफी की भी हद होती है, ये कोई लोकतांत्रिक देश नहीं है कि आप महाराज पर लगाए गए किसी भी आरोप का वीडियो शेयर कर देंगे। ये वो दौर है जहाँ इंटरव्यू से पहले सवाल कन्फर्म किये जाते हैं और तुम चले हो अभिव्यक्ति की आजादी की बात करने। मोदीजी कहते हैं लोकतंत्र में हंसी मजाक और आलोचनाएं होती रहनी चाहिए। लेकिन उनके इस कथन में कुछ टर्म्स एन्ड कंडीशन्स भी हैं। आलोचना और हंसी मजाक तो होना चाहिए, लेकिन आलोचना करने का काम सत्ता करेगी और आलोचना झेलने का काम विपक्ष करेगा और पत्रकारिता करेगी। यही इस दौर का सत्य है जिसे अधिकतम दरबारी पहले स्वीकार चुके हैं, आप भी जितने जल्दी मान जाएंगे बेहतर होगा। सरकार की आलोचना करना पत्रकारिता नहीं है, पत्रकारिता है ये पूछना कि आप बटुआ रखते हो या नहीं? प्रशांत कनोजिया के पोस्ट से मैं सहमत हूँ या नहीं ये विषय नहीं है। उनके पोस्ट से योगीजी को इतनी ठेस क्यों पहुँची ये भी मुद्दा नहीं है, क्यों