इस तरह भाई साहबों की कठपुतली बने रहते हैं राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता
भाई साहब, हम सबकी ज़िंदगी बहुत मजेदार है। जो नेता पसन्द न आए, जी भर के सोशल मीडिया पर गुस्सा निकालो, जो जी में आए बक दो। साथ-साथ अपनी नौकरी करते रहो मजे में। ज़रा उन नेताओं, कार्यकर्ताओं के दिल से पूछिये काम क्या होता है, जो डंडे झंडे उठाते हैं, दिनभर व्हाट्सएप पे आईटी सेल के पोस्ट फॉरवर्ड करते हैं। जिन सो कॉल्ड भाई साहब के पीछे दिन भर घूमते हैं, वो यही दिलासा देते रहता हैै कि इस बार अपना टिकट पक्का। फिर आता है चुनाव, भाई साहब का टिकट तो पक्का है ही, बस मेहनत करना है जमके और भाई साहब को जिताना है। लेकिन जब टिकट कन्फर्म होता है तो पता चलता है कि भाई साहब का इस बार भी कट गया (टिकट)। उधर भाई साहब गुस्से में आग बबूला, इधर कार्यकर्ता को समझ नहीं आता कि अब करें तो करें क्या बोलें तो बोलें क्या। डरते डरते भाई साहब से पूछते हैं- भाई साहब अब क्या करेंगे? अब भाई साहब वैसे ही गुस्से में हैं, हाईकमान का तो कुछ उखाड़ नहीं पाए, कार्यकर्ता पर ही बिफर पड़ते हैं। कार्यकर्ता बेचारा निराश अपने घर लौटता है, घर वालों के ताने तो रोज़ ही सुनता है तो उसकी कोई टेंशन नहीं है। बस भाई साहब का टिकट हो जाता तो अपनी भी