उस दुख भरे माहौल में एडवेंचर करने के लिए मोदीजी बधाई के पात्र हैं

ईश्वर न करे ऐसा हो फिर भी सोचकर देखिए। आपके घर पर कुछ गुंडे हमला कर देते हैं। एक एक सदस्य को मौत के घाट उतारकर लाश के चिथड़े चिथड़े कर दिए जाते हैं। ये खबर घर के मुखिया को लगती है, जो पार्क में सैर करने गया है। वह क्या करेगा? मान लीजिए मुखिया पक्के दिल का भी है फिर भी दुखी मन से घर तो आएगा ? निश्चित ही आएगा। जानते हैं क्यों? क्योंकि वह महामानव नहीं है। वह एक मूर्ख इंसान है। 
अब सोचिए आपको खबर लगती है कि आपके किसी दुश्मन की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। लाश के परखच्चे उड़ गए। क्या आप अपना कोई मनोरंजक कार्य छोड़कर सोच में नहीं पड़ जाएंगे। क्या यह नहीं सोचेंगे उसे ऐसे नहीं मरना चाहिए था? यही व्यक्ति दुश्मन की जगह कोई दोस्त हो तो शायद आप दौड़े दौड़े जाएंगे उसके मृत शरीर को देखने, जिसमें अब कुछ नहीं बचा। हालांकि अब आप कुछ कर नहीं सकते फिर भी जाएंगें। क्योंकि आप इंसान हैं, साथ ही बेवकूफ भी। आपको इतना ज्ञान नहीं है कि मरा हुआ इंसान वापस तो आएगा नहीं। इसलिए बेहतर है कि अपना काम ही निपटा लिया जाए। भले ही वह काम कितना भी फालतू हो पर निपटा लिया जाए। क्योंकि जो हमारा अजीज़ है वह तब तक ही अजीज़ था जब तक जिंदा था। अब वह एक मिट्टी का पुतला है। आपकी जगह कोई समझदार होता तो यही करता। सबसे बड़ा उदाहरण हैं हमारे प्रधानमंत्री। वह बेयर ग्रिल्स के साथ शूटिंग कर रहे थे। अचानक पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हमला होता है। पीएम हैं, उनके साथ उनका स्टाफ चलता है। क्या उनका स्टाफ उन्हें इतनी बड़ी खबर से बेखबर रख सकता है? वो भी मोदी जी को? वह मोदी जी जिनकी तिरछी नज़र पड़ते ही रिज़र्व बैंक के गवर्नर्स को इस्तीफे देने पड़ जाते हैं। जाहिर है सूचना मिली होगी। इसके बाद भी शूटिंग हुई। क्योंकि मोदीजी एक समझदार इंसान हैं। जवानों की शहादत पर इस तरह के एडवेंचर नहीं टाले जाते। बल्कि शहादत पर तो वोट मांगा जाता है। साहब को पता था अभी जाकर मातम मनाने से कुछ नहीं होगा। अभी गेंद विपक्ष के पाले में रहने दो। विपक्ष सिक्योरिटी फेलियर की बात कहेगा, हम कहेंगे शहादत पर राजनीति की जा रही है, बस बन जाएगी बात। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। विपक्ष ने तो कह दिया कि दुख की इस घड़ी में हम सरकार और देश के साथ हैं। यही नहीं, साहब की शूटिंग का मुद्दा भी उठा दिया गया। हालांकि चूक यह हुई कि डिस्कवरी चैनल की शूटिंग को विज्ञापन की शूटिंग समझ लिया गया।

इस आरोप का जवाब अब सरकार को देना था। दिया भी गया। क्या जवाब दिया गया? यही कि कांग्रेस हमें राष्ट्रवाद न सिखाए। अब ये बात भी सही है। जब राष्ट्रवाद का ठेका भाजपा के पास है तो कांग्रेस कौन होती है सिखाने वाली? माना कि जब जवानों की लाशों के चिथड़े समेटे जा रहे थे तब साहब शूटिंग में व्यस्त थे। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि राष्ट्रवाद से उनका कॉपीराइट खत्म हो गया। बात रही शूटिंग की, तो उसका जवाब फिर किसी ने दिया नहीं, जनता ने पूछा भी नहीं। जनता आक्रोश में थी। सेक्योरिटी फेलियर को लेकर? नहीं पाकिस्तान को लेकर। पाकिस्तान कहाँ से आया? पता नहीं। बस सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते थे, इसलिए पाकिस्तान बेहतर पंचिंग बैग था। इसके बाद न तो सरकार से यह पूछा गया कि सुरक्षा में चूक कैसे हुई? न ही यह पूछा गया कि ये कैसा देशप्रेम है। क्योंकि साहब ने एक काम ऐसा कर दिया था जिससे साबित हो चुका था कि वह सच्चे देशभक्त हैं। वो क्या था? वो था चुनावी रैली मैं यह कहना कि- आपका वोट पुलवामा हमले में शहीद हुए जवानों पर हो सकता है क्या? किसी ने यह भी नहीं पूछा कि जवानों पर हो तो सकता है, लेकिन किसको देना है। आपको? आप तो शूटिंग कर रहे थे। वह उस समय शूटिंग कर जरूर रहे थे, लेकिन साथ में एयर स्ट्राइक और उस इंटरव्यू की तैयारी भी चल रही थी जिसमें वह कहेंगे मेरी प्लानिंग से ही सब कुछ सही हो पाया।
खैर विपक्ष मूर्ख था, जो 70 सालों में ये सीख नहीं पाया कि बिना गम्भीर रहे किस तरह जवानों की लाशों को वोट में बदला जाता है। मोदी जी समझ गए। क्योंकि वह प्रेक्टिकल हैं। वह भावुक नहीं होते। वह गणित लगाते हैं। तभी हमें गर्व है उनपर। उनकी डायनमिक पर्सनालिटी पर। उनके भाषणों पर। उनके विदेशी दौरों पर। इस बात पर भी कि वह मैन वर्सेज वाइल्ड में जाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने। शहादत- वहादत चलता रहता है। चिल मारिये। मोदीजी पॉजिटिविटी पर भरोसा करते हैं। आप भी पॉज़िटिव रहिये, आनन्द लीजिये। मोदी जी को बधाई।

Comments

  1. Gajab hai modi aur tum unse jalte ho kyunki tum modi nhi ho , tum nhi kr skte esa shame on you

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